तुम मोरी राखो लाज हरी

तुम मोरी राखो लाज हरि,
तुम जानत सब अन्तरयामी, करनी कछ न करी।

अवगुण मो से बिसरत नांही पल छिन घरि घरि।।
सब प्रपंच की पोट बांधकर अपने शीश धरि।।

दारा सुत धन मोह लिये हैं सुध बुध सब बिसरी ।।
सूर पतित को बेगि उबारो, अब मोरि नाव भरी।।
तुम मोरी राखो लाज हरि।