तू ही तू गुरुदेव हमारे साखी साष्टांग दण्डवत करूँ सदगुरु तव चरणार। जाकी पद नख ज्योंत से आलोकित संसार।। जिसने गुरु को सौंप दी निज जीवन की बाग | कबहूँ वह जरता नहीं काम क्रोध की आग।। भजन तू ही तू गुरुदेव हमारे सब कछु मेरे नाम तिहारे || तू ही तू... तुम ही पूजा तुम ही सेवा, तुम ही पाती तुम ही देवा। जोग जग्य तू साधन तापा, तुम ही मेरे आपे आपा।॥। तू ही तू... तप तीरथ तू व्रत असमाना, तुम ही ज्ञान अरु तुम ही ध्याना। बेद भेद तू आठ पुराणा, दादु के तुम पिण्ड और प्राणा।।