ठाकुर तुम शरणायी आया

ठाकुर तुम शरणायी आया
उतरगयो मेरे मन का संशा जब ते दर्शन पाया।।

अन बोलत मेरी बिरथा जानी, अपना नाम जपाया।।
दुःख नाटे सुख सहज समाये, आनंद आनंद गुण गाया ।।
बाँह पकड़ कढ़ लीन्हे अपने, गृह अन्ध कृप ते माया।।
कहे नानक गुरु बन्धन काटे, बिछरत आन मिलाया।।

ठाकुर तुम शरणायी आया .
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