रे मन कृष्ण नाम कहि लीजे साखी श्री कृष्ण विनती यह दास की है, भूले न मन नाम कभी तुम्हारा निष्पाप हो के दिन रात गारऊँ श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारे देहान्त समय तवदर्श ही हो मुरली बजाते गाते लुभाते गाता यही नाथ तनु दास त्यागे। श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे।। वसुदेव सुतं देवं कृष्ण चाणूर मरदनम्। देवकी परमानन्दम कृष्ण वन्दे जगत गुरुं।। भजन रे मन कृष्ण नाम कहि लीजे गुरु के वचन अटल कर मान ही साधु समागम कीजे।। पढ़िये सुनिये भगति भागवत और कहा कथि कीजे कृष्ण नाम बिनु जनम वादहिं बिरथा काहे जीजे।। रे मन।। कृष्ण नाम रस बह्मो जात है तृषावन्त वे पीजे। सूरदास हरि शरण ताकिये, जनम सफल कर लीजे।। रे मन।।