नहिं बिसरू दिन राती

नहीं बिसरुं दिन राती, ऐ जी म्हारा जनम मरण रा साथी।
में थाने नहि बिसरु दिन राती

तां देख्यां बिन कल ना पड़त है,

जानत मेरी छाती।

ऊंची चढ़ चढ़ पंथ निहार,

रोई रोई अंखियां राती।। ऐजी म्हारा....
भाई बन्धु और कुट॒म्ब कबीला,

झूठा कुल रा नाती।

दोऊँ कर जोड़ में अरज करत हूं,

सुन लीज्यो म्हारी बाती।। ऐजी म्हारा....
ओ मन म्हारो बड़ो हरामी,

जेसे मगनो हाथी।

सतगुरु हाथ दिया सिर ऊपर,

अंकुश दे समझाती |। ऐजी म्हारा....

पल पल प्रभु को रूप निहारं,

निरख निरख सुख पाती ।

मीरा के प्रभु हरि अविनाशी,

चित्त चरणो में राति।। ऐजी म्हार....