मैं केसे जीवूं मेरे साहिब गुसाई में कैसे जीवूं मेरे साहिब गुसाई । जो तुम छोड़ो मोरे समर्थ सांई ।। जो तुम परिहरो रहो नियारा, तो सेवक जावे कौन के द्वारा। जो जन सेवक कोटि बिगारे, साहिब तेरे घर कोटि निवारे कोटि निवारे।। जो तुम जन को मन ही बिसारा, दूजा कौन संभारन हारा। सिमरथ साहिब सांई मेरा, दादू दीन लीन भया तेरा।।