मैं अरज करेँ गुरु थाने

    	साखी

वह दिन कैसा होयगा जब गुरु पकड़ेंगे बाँह,
अपनाकर बिठलायेंगे चरण कमल की छांह।

हाथ जोड़ विनति करुँ अपनाओ गह बाँह,
द्वार तिहारे आ पड़ा विद्या गुण कछ नाँह।

मोमे इतनो बल कहाँ जो गाऊँ गला पसार,
बन्दे की यह विनती पड़ा रहूँ दरबार।

    	भजन

में अरज करूँ गुरु थाने चरणों में राखज्यो म्हाने।
में परगट कहूँ या छाने म्हारी लाज शरम गुरु थाने।

भवसागर भरिया भारा मोहे सूझे नांहि किनारा।
में डूब रहयो मझधारा, मोहे बाँह पकड़ के उबारा।।

मात पिता सुत भ्राता कोई संग चले नहीं साथा।
मेरा इनसे छुड़ावो नाता आप तारण तरण गुरु दाता।।

जग में संत बड़े उपकारी सब जीवों के हितकारी।
मोहे आयो भरोसो भारी नाहीं छोडुं में शरण तिहारी ।।

तन मन धन अर्पण सारा चाहे शीश काटल्यो म्हारा।
जन दरिया कहे पुकारा चरणो रा चाकर थारा।।