हे गोविन्द हे गोपाल हे गोविन्द हे गोपाल राखो शरण अब तो जीवन हारे नीर पीवन हेतु गयो सिन्धु के किनारे। सिंधु बीच बसत ग्राह चरण धरि पछारे।। चार प्रहर युद्ध भयो, ले गयो मझधारे। नाक कान डूबन लागे, कृष्ण को पुकारे।। द्वारिका में शब्द गयो, शोर भयो भारे। शंख चक्र गदा पद्म, गरुड़ ले सिधारे।। सूर कहे श्याम सुनो, शरण हैं तिहारे। अबकी बेर पार करो, नन्द के दुलारे।। हे गोविन्द हे गोपाल राखो शरण अब तो जीवन हारे।