गुरु जी से प्रीत जो कीजे साखी गुरु को कीजे वन्दगी कोटि कोटि प्रणाम। कीट न जाने भूंग को गुरु करले आप समान ।। भजन सुन्दर सतगुरु वंदिये सो ही वन्दन योग। औषध शबद पिलाय के दूर करे भव रोग।। गुरु समान दाता नहीं याचक शिष्य समान। तीन लोक की सम्पदा, गुरु पल में देवे दान ।। गुरु हैं बड़े गोविन्द ते मन में देख विचार। हरि सुमिरे सो आर है गुरु सुमिरे सो पार।। तीन लोक नो खण्ड में गुरु ते बड़ा न कोय। करता करि ना करि सके सतगुरु करे सो होय।। ये तो है घर प्रेम का खाला का घर नाहिं। शीश उतारे भूमि धरे सो बैठे घर मांहि।। भक्ति दुहेली राम की नहीं कायर को काम । शीश काट पगतर धरे सो लेसी हरि नाम।। प्रेम न बाड़ी नीपजे प्रेम न हाट बिकाय। राजा परजा जेहि रुचे , वो शीश देय ले जाय ।।