गुरु चरण कमल बलिहारी रे

            साखी

गुरु पारस गुरु परस हैं, चन्दन वास सुवास।
सतगुरु पारस जीव के दीन्हो मुक्ति निवास ।।

सतगुरु बड़े सराफ हैं परखे खरा और खोट।
भवसागर ते काढ़िके, राखे अपनी ओट।।

सद्गुरु मेरा सूरमा वार करे भरपूर।
बाहिर कछु ना दीख ही भीतर चकनाचूर।।

बलिहारी गुरु आपकी घड़ी घड़ी सौ सौ बार।
मानुष ते देवता किया करत न लागी बार।।

       भजन

गुरु चरण कमल बलिहारी रे
मोरे मन की दुविधा टारी रे।। गुरु ....

भव सागर में नीर अपारा,
डूब रहा नहिं मिले किनारा ।
पल में लिया उबारी रे ।। गुरु ....

काम क्रोध मद लोभ लुटरे,
जनम जनम के बेरी मेरे।
सबको दीन्‍्हा मारी रे।। गुरु ....

द्वैत भाव सब दूर कराया ,
पूरण ब्रह्म एक दरसाया।
घट घट ज्योत निहारी रे।। गुरु ....

जोग जुगत गुरु देव बताई ,
ब्रह्मानंद शांति मन आईं ।
मानुष देह सुधारी रे।।