गुस बिन कौन सहाई जगत में साखी कबीर वे नर अंध हैं जो गुरू को समझे और, हरि रुठे गुरु ठोर है, गुरु रूठे नहिं ठोर । । कबीर हरि के रूठते गुरु के शरणे जाय, कहत कबीर गुरु रूठते हरि नहिं होत सहाय । । गुरु को कीजे वन्दगी कोटि कोटि प्रणाम कीट न जाने भृंग को गुरु करले आप समान । । ये तन विष की बेल है गुरु अमृत की खान, शीश दिये जो गुरु मिले तो भी सस्ता जान । । गुरु गोविन्द दोऊ एक है दूजा सब आकार, आपा मेटे हरि भजे तब पावे करतार । । गुरु हैं बड़े गोविन्द ते मन मे देख विचार, हरि सुमिरे सो वार हे गुरु सुमिरे सो पार । । तू हरि से मत हेत कर कर हरिजन से हेत, मान मुलक हरि देत हैं हरि जन हरि ही देत । । भजन गुरु बिन कौन सहाई जगत में, गुरु बिन कौन सहाई मात पिता सुत बान्यव नारी, स्वारथ के सब भाई रे । बिन स्वारथ का बन्धु जगत में सतगुरू बन्ध छुड़ाई । । जगत में.... भव सागर जल दुस्तर भारी, ग्राह बसे दुःख दाई रे । गुरु खेवटिया पार लगावे, ज्ञान जहाज बिठाई । । जगत में.... जनम जनम का मेट अंधेरा, संशय नसल नसाई । । पार ब्रह्मा परमेश्वर पूर्ण, घट में दे दर्शाई । । जगत में... गुरु के वचन धार हदय में, भाव भक्ति मन लाई रे । बह्मानंद करो नित सेवा ) मो त्सा पदार थ पाई । । जगत में....