भाग्य बड़े में सदगुरु पायो
 
         साखी

  साष्टांग दण्डवत करूँ सदगुरु तव चरणार।
  जाकी पद नख ज्योत से आलोकित संसार।।

  गुरु मिले तो सब मिला नहीं तो मिला न कोय।
  मात पिता सुत बान्धवा ये तो घर घर होय।।

  सहजो सद्गुरु के मिले हम भये और से और।
  काग पलट गति हंस भई, पाई भूली ठोर।।

  नमो नमो गुरु देवजी सत्तस्वरूपी देव।
  आदि अन्त गुणकाल के जाणन हारे भेव।।

  सुन्दर सतगुरु वंदिये सो ही वन्दन योग।
  औषध शब्द पिलायके दूर करे भव रोग।।

      भजन

  भाग्य बड़े मै सद्‌गुरु पायो
  मन को दुविधा दूर नसांई ।। भाग्य बड़े....
  बाहिर ढूंढ़ फिरा में जिसको सो वस्तु घट भीतर पाई ।।
  जनम जनम के बन्धन काटे, चौरासी लख त्रास मिटाई ।।
  सकल जूण जीवन के माहीं पूरण ब्रह्म ज्योत दरशाई ।।
  ब्रह्मानन्द चरण बलिहारी गुरु महिमा हरि ते अधिकाई ।।