ऐ मेरे गुरुदेव करुणा सिंधु करुणा ऐ मेरे गुरुदेव करुणा सिंधु करुणा कीजिये हों अधम आधीन अशरण, अब शरण में लीजिये।। टेक ।। खा रही गोते हूँ में भवर्सिंधु के मझधार में आसरा है दूसरा कोई ना इस संसार में ।। ऐ मेरे... मुझ में है जप तप ना साधन और नहिं कछ ज्ञान है मोह की फांसी है गल बिच और बस अभिमान है।। ऐ मेरे... सब जहाँ में भटक कर, अब शरण ली गुरु आपकी। पार करना या ना करना दोनों मर्जी आपकी ।। ऐ मेरे... आप भी यदि छोड़ देंगे फिर कहाँ जाऊँगी मैं। में अनाथ हूँ नाथ तुम बिन कैसे जी पाऊँगी मैं ।। ऐ मेरे....