आनंद ही आनंद बरस रहयो साखी साष्टांग दण्डवत करूँ सदगुरु तब चरणार। जाकी पद नख ज्योति से आलोकित संसार।। गुरु मिले तो सब मिला नहिं तो मिला न कोय। मात पिता सुत बान्धवा ये तो घर घर होय।। भजन आनंद ही आनंद बरस रह्मो बलिहारी ऐसे सद्गुरु की। धन भाग हमारे आज भये शुभ दर्शन ऐसे सद्गुरु के ।। आनंद ।। व्याख्यान छटा जिमिइन्द्र घटा बरसत वाणी अमृत धारा। ये मधुरी मधुरी अजब ध्वनि बलिहारी ऐसे सद्गुरु की।। गुरु ज्ञान रूपी जल बरसाकर गुरु धर्म बगीचा लगाय दिया। खिल रही है ऐसी फुलवारी, बलिहारी ऐसे सदगुरु की।। करुणा सागर करुणा करना मरुधर में है मेरा रहना। गुरु चरणों में चित्त खो देना बलिहारी ऐसे् सद्गुरु को।। आनंद आनंद ही आनंद बरस रह्यो बलिहारी ऐसे सद्गुरु की।