ऐसी करी गुरुदेव दया
 
	        साखी

  भली भई जो गुरु मिले नहि तो होती हानि।
  दीपक ज्योंति पतंग ज्यों पड़ता आय निदान।।

  सतगुरु के उपदेश का सुनिया एक विचार।
  जो सतगुरु मिलते नहीं तो जाता यम के द्वार।।

  यम के द्वारे दूत सब करते खेंचातान।
  उनते कबहूँ न छूटता फिरता चारों खान।।

  चार खान में भरमता कबहूँ न लगता पार।
  सौ सब फेरा मिट गया सतूगुरु के उपकार।।

 	        भजन
 
  ऐसी करी गुरु देव दया मेरा मोह का बंधन तोड़ दिया।

  में दौड़ रहा दिन रात सदा जग के सब काज विहारनमें।

  सपने सम विश्व दिखाय मुझे मेरे चंचल चित्त को मोड़ दिया।।

  कोई शेष गणेश महेश रटे कोई पूजत पीर पैगम्बर को।
  सब ग्रन्थ और पन्थ छुड़ा करके, इक ईश्वर में मन जोड़ दिया।।
  कोई ढूंढ़त है मथुरा नगरी कोई जाय बनारस वास करे।
  जब व्यापक रूप पहचान लिया सब भरम का भंडा फोड़ दिया।।
  मैं कौन करूँ गुरुदेव की भेंट न वस्तु दिखे तिहंं लोकन में।
  ब्रह्मानंद समान न होय कभी धन मानिक लाख करोड़ दिया।।

  ऐसी करी गुरुदेव दया।....