है क्या क्या जलवा भरा हुआ है क्या क्या जलवा भरा हुआ, दादाजी आपकी आँखों में मैंने देख लिया सारी दुनिया का, दीदार आपकी आँखों में तुम मार भी सकते हो पल में, और तार भी सकते हो पल में है विष अमृत का भरा हुआ, भंडार आपकी आँखों में है क्या क्या... ये रचना ओघट घाट की है, क्या मूरत रूप विराट की है संसार की आँखों में तुम हो, संसार आपकी आँखों में है क्या क्या... छिनभर में विश्व रचावत हो, और पल में उसे मिटावत हो है कोटि कोटि ब्रम्हांड भरा, दादाजी आपकी आँखों में है क्या क्या... व्यापक हो विश्व चराचर में, जड़ जीव जंतु नर नारी में अब किंकर अपने आन बसो, दादाजी हमारी आँखों में है क्या क्या... मुझ में और तुझ में भेद यही, मैं नर हूँ आप नारायण हो मैं हूँ संसार के हाथो में, संसार आपके हाथो में है क्या क्या...