दादा मै तुम में रम जाऊं हे दादा मै तुम में रम जाऊं ऐसी निर्मल बुद्धि कर दो चित्त चिंता करता रात दिवस विषयों के आनंद पाने को हे सत चित आनंद रूप दादा मेरे चित्त को चेतन कर दो हे दादा मै तुम में रम जाऊं... यह चंचल मन संकल्पों का एक जाल बिछाए रहता है एक झांकी अपनी दिखा के दादा मनमोहन रूप इसे कर दो हे दादा मै तुम में रम जाऊं... मुख से गुणगान करूं तेरा मीठा ही वचन उच्चारूं सदा अमृत की धार पिला के दादा वाणी मेरी अमृत कर दो हे दादा मै तुम में रम जाऊं... पर दोष ना देखूं आंखों से ना सुनू बुराई कानों से सारा जग आनंदरूप दिखे दादा दृष्टि ऐसी कर दो हे दादा में तुम में रम जाऊं... यह अंग प्रति अंग जो मेरे हैं लग जाए सेवा में तेरी सेवा अर्पण हो चरणों में दादाजी कृपा ऐसी कर दो हे दादा में तुम में रम जाऊं...