ए सतगुरु ए मेरे मेहरबान ए सतगुरु ए मेरे मेहरबान तेरे एहसान कैसे करूं मैं बयान मैं धरा तू आसमान प्रेम नजर करके रहमों करम तूने मुझको पहुंचाया कहां से कहां बदला है मेरा जहां ऐ सतगुर... की हैं इतनी रेहमते जिनके मैं काबिल ना था ऐसी थी यह जिंदगी जिसका कोई साहिल न था तू मिला तो रब मिला रब मिला तो सब मिला झूम उठी है जिंदगी जीने का शबब मिला ऐ सद्गुरु... जग की जलती धूप में तेरी छाया मिल गई रोते नैना हंस पड़े दिल की कलियां खिल गई खुदा का है रहमों करम सांसे हैं इधर उधर ना उतार पाऊं में कर्ज़ तेरा उम्र भर ऐ सद्गुरु... की हैं इतनी रहमते झोली छोटी पड़ गई ऐसी झोली से मेरी आंखें गीली हो गई भाग्य तू सवांरता पार तू उतारता भक्त तेरा हर घड़ी शुक्र है गुज़ारता ए सतगुरु.....