नर्मदा तट पर ६७ करोड़ ६७ हज़ार तीर्थ हैं | माँ नर्मदा का उद्गमन अमरकंटक से है | माँ नर्मदा की परिक्रमा का विधान सनातन धर्म से चला आ रहा है। माँ नर्मदा की परिक्रमा संत एवं साधारण लोग बरसों से करते आ रहें हैं। श्री गौरी शंकर जी, श्री बड़े दादाजी, श्री छोटे दादाजी, श्री बड़े सरकार जी, और उनके बाद अब श्री छोटे सरकार जी ने यह परंपरा जारी रखी | दुनिया भर की नदियों में केवल माँ नर्मदा ही है जिनकी परिक्रमा का विधान है |
छोटे दादाजी फ़रमाया करते थे कि यमुना नदी में सात दिन तक, सरस्वती नदी में तीन दिन तक, और गंगा नदी में एक दिन स्नान करने से पवित्र होते हैं वहीं माँ नर्मदा के दर्शन मात्र से ही प्राणी पवित्र हो जाते हैं | एक बार श्री छोटे दादाजी अपने एक भक्त के साथ ओम्कारेश्वर में नर्मदा जी में स्नान कर रहे थे कि उस भक्त के हाथ में पीतल कि एक मूर्ति आ गयी। छोटे दादाजी ने कहा कि हमारी कुल देवी माँ नर्मदा हैं और ये उन्ही कि मूर्ति हैं। वह उस मूर्ति को खंडवा ले आये और कोठार नाम कि जगह में स्थापित कर दिया। करीब १९७५ में जब खंडवा में दादा दरबार बना तो उनकी मूर्ति को वहां स्तापित किया गया। नर्मदा किनारे आदि शंकराचार्य से लेकर अनवरत्त आज तक आध्यात्मिक सिद्धि एवम् साधना का केंद्र बना और अनेक संतो ने तपस्या की | मार्केंदया पुराण व स्कंध पूरण का नर्मदा खंड इस बात का प्रमाण है कि ये स्थान तपोस्थलि है| स्कन्द पुराण के रेवा खंड में ही सत्य नारायण जी कि कथा भी आती है | श्री बड़े दादाजी को पूजने वालों के लिए माँ नर्मदा उनकी कुल देवी हैं | इसीलिए सारे दादा दरबार में देवियों में केवल माँ नर्मदा की पूजा होती है |