ए दिल तू पुकार दयानिधि को, तेरी टेर सुनेंगे कभी न कभी वह दीन दयालु हरीहर हैं, दिन तेरे फिरेंगे कभी न कभी हैं मोहन मधुर प्रभादारी, जब देखें नज़र परम प्यारी बस धन्य बने तू उसी क्षण मे, तेरी पीर हरेंगे कभी न कभी जब निर्गुण रूप सुहाते हो, अरु सर्गुण बन मुस्काते हो यह झांकी खूब जमा लेना, भव दुःख टरंगे कभी न कभी दर पे नित फेरी लगाता जा, अपना दुःख दर्द सुनाता जा जब मौज मे आयेंगे भोले प्रभु, तब पूछ ही लेंगे कभी न कभी जब मस्त मुक्त इठलाते हों, अरु प्रेम प्रसाद लुटाते हों "जय हों दानी" कहते जाना, तेरी झोली भरेंगे कभी ना कभी यहाँ पर आकर दुःख देता है, इस कृष्ण से बदला लेता है जा! जा! तू शरण इस बूँद को ले, स्वीकार करेंगे कभी ना कभी